अंकुर सुर्यान
Sunday, January 20, 2013
देखता हु आज मै
देखता
हु
आज
मै
,
बढता
हुआ
समाज
को
सोच
है
बिखरी
हुई
और
सोच
है
खडे
हुई
सोच
कर
मै
सोचता
हु
,
क्या
हुआ
समाज
को
और
क्या
हुआ
इन्सान
को
,
की
सोच
है
बिखरी
हुई
,
की
बात
है
बिगड़ी
हुई,
की
सास
है
चलती
हुई
और
सोच
है
थमी
हुई
!!!
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